सेक्स से सम्भोग

जब भी विपरीत लिंग एक दूसरे को देखते है तो सेक्स का ख्याल अक्सर आता है ।
मग़र आज के समय मे सेक्स को हिंसक बनाने में पोर्नोग्राफी का काफी हाथ रहा है ।
असल मे लोग जो पोर्नोग्राफी देखते है उन्हें ऐसा लगता है, कि वो सब वास्तव में होता है और अपने वास्तविक जीवन मे भी उसका प्रयोग करते है ।
पोर्नोग्राफी के वजह से सेक्स अब लिंगीय न रह कर मानसिक हो चुका है जिसके परिणाम बहुत घातक है।

पोर्नोग्राफी के वजह से उनकी सहयोगी पर मानसिक और शरीरिक दबाव बनाया जाता है उस तरह से सेक्स करने के लिए ।
जो कि पूर्ण रूप से गलत है, मग़र जिद तो जिद है क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि इससे चरम सुख मिल जाएगा ।
जब कि इसके वजह से उनका सम्बन्ध और बिगड़ जाता है क्योंकि बिना सहमति और आनंद के वो सब करना होता है जो उसे पसन्द न है ।
कितनी बड़ी विडंबना है कि भारत मे वातसन्य ऋषि हुवे जिन्होंने कामसूत्रा लिखा जिसमे जीवन के हर पहलू के बारे में लिखा और सम्भोग कला पर भी, मध्यप्रदेश में इसका एक बड़ा मन्दिर भी है खजुराहो ने बनवाया है जो पूर्णत संभोग पर आधारित है उसके बाहरी दीवारों पर ऐसे कलाकृति बनी है, मतलब आज का भारत की सोच कक क्षमता उतनी न है इस विषय मे जितनी प्राचीन समय मे भारत के ऋषि मुनि को थी ।
 जिस भारत ने लोगो सम्भोग की कला से अवगत कराया आज वही देश इसकी समस्या से जूझ रहा है इसका मूल कारण है बिना रसातल में गए चरम पाने की होड़ ।
जबतक आप अपने साथी से सेक्स करेगे और पौरूषपन दिखायेंगे आप चरम और सम्भोग आनंद और एक दूसरे को समझने जीने की कला से वंचित रहेंगे ।
केवल लिंग को योनि में रगड़ के और अपना वीर्यपात कर के आप ये सोच रहे ही कि आपने उसे सुख दिया तो आप गलत है आपने बस उसे जलन पीड़ा और पेट दर्द दिया है,
अगर आप सम्भोग करेगे तो भी ये होगा मग़र अहसास उस दर्द का आप दोनों की नजदीकियां बढ़ा देगा ,
सम्भोग में दोनो पक्ष आगे आकर न केवल सेक्स बल्कि हर वो कला का प्रदर्शन करता है जो उसके साथी को सुख देता है ।
सम्भोग आनंददायी और सुखमय रसमय है मग़र सेक्स हिंसक है ।
सम्भोग में आप हिंसा नहीं बल्कि अपने साथी के दर्द को समझते भी है और आपकी साथी उस दर्द का सुख भी उठाना पसन्द करती है ,
मग़र बात जब पोर्नोग्राफी वाले सेक्स की करे तो वो हमेशा असन्तोष असंतुलन और बिना तुस्टीकरण का होता है ।
सेक्स में एक पक्ष का ही सुख मिलता है ( ऐसा होता है न है बस उसे लगता है )
और दूसरा पक्ष मुर्दा शांति से भरा है ।
खुद सोचिए कि जब आप का साथी आप के हर कला में आप का सहयोग करने की जज्बा रखता है आखिर क्यों वो सेक्स पर आ के सिकुड़ जाता है।
क्योंकि वो सम्भोग चाहता है न कि सेक्स
वो प्रेम मिश्रति सम्भोग की चाहत रखता है न कि हिंसक सेक्स का ।
सम्भोग व्यापक और अर्थपूर्ण है मगर सेक्स नीरस और बेतरतीब है ।
ख़ैर कुछ लोग ये पढ़ के मुझे गलत भी बोल सकते है मग़र ये उनकी समस्या है ।
बस मैं ये मान लूंगा की उनकी समझ मेरे स्तर पर नही है ।
© अशोक द्विवेदी "दिव्य"

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