मार्क्सवाद भी अभी की वर्तमान परिस्थितियो मे राह नहीं बना सकता ,
वो भी अपनी मूल भावनो से ओझल होते दिख रहा है,
और समाजवाद तो भ्रष्ट एवं भ्रष्टाचार,
परिवारवाद के नीचे दम तोड़ कर सिसक रहा है,
और फिरकापरस्तो की हालात देश को
नाकारात्मक राजनीति से हिन्दू मुस्लिम, गाय,
मांस
की राजनीति से नफरतों की असीम दीवार खडी कर दी है ,
यह समय बड़े ही कठिन दौर का है सामाजिक,
पारिवारिक, राजनैतिक, राज्य और देश के लिऐ भी,
और खासकर देश मे ऐसी शक्तिया प्रभावशाली होते जा रही है।
जो प्रशासनिक व्यवस्था को चुनौती लगातार दे रही है ।
वो भी अपनी मूल भावनो से ओझल होते दिख रहा है,
और समाजवाद तो भ्रष्ट एवं भ्रष्टाचार,
परिवारवाद के नीचे दम तोड़ कर सिसक रहा है,
और फिरकापरस्तो की हालात देश को
नाकारात्मक राजनीति से हिन्दू मुस्लिम, गाय,
मांस
की राजनीति से नफरतों की असीम दीवार खडी कर दी है ,
यह समय बड़े ही कठिन दौर का है सामाजिक,
पारिवारिक, राजनैतिक, राज्य और देश के लिऐ भी,
और खासकर देश मे ऐसी शक्तिया प्रभावशाली होते जा रही है।
जो प्रशासनिक व्यवस्था को चुनौती लगातार दे रही है ।
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