ब्लात्कार समाज और सोशल मीडिया


आजकल बलात्कार की ख़बर इतनी आ रही है, मानो सबसे ज्यादा बड़ी समस्या यहीं हो चुकी है । जब देश निर्भया कांड हुआ तो लगा कि देश के जनता में एक क्रोध, प्रतिशोध, और निर्णय के लिए एक लहर की कसक जाग उठी तो लगा कि नही अब ये शायद आख़िर बर्बरता है , जघन्य अपराध का मग़र उसके बाद नतीजा लगभग सब छूट ही गए ।
उस से भी ज्यादा अमानवीय अपराध उस महिला के साथ जिसके साथ बलात्कार के बाद उसके योनि में बॉस डाल दिया गया सर को कार से कुचल के चेहरा जला दिया गया, मग़र मामला ज्यादा तूल न पकड़ा , न ही मीडिया को न ही स्वघोषित समाजिक प्राणी को पड़ पाई ।
उससे भी ज्यादा क्रूरता मधुबनी की लड़की झा के साथ बलात्कार कर के जला दिया गया , और 2 रोज पहले हैदराबाद में एक डॉक्टर रेड्डी को बलात्कार के बाद जला दिया गया ।
जरा ठहर के सोचिये की क्या वो चिल्लाई न होगी क्या वो तड़प में बिलखी न होंगी उसने हर बार हाथ न जोड़े होंगे ।
क्या बलात्कार के वक़्त कोई न होगा जिसने सुना होगा और तकलीफ महसूस की होगी ।
मग़र बोल के कौन फ़साना चाहता है, मेरा थोड़े ही है ।
उसके बाद एक मंत्री जी ने बोला कि बहन को क्यों कॉल किया पोलिस को क्यों नही ।
एक नेता ने कहा लड़को से गलती हो जाती है,

एक ने कहा कि छोटे कपड़े पहने जाने के नतीजे है ।
जिस देश बलात्कारी के भी पक्षधर मिल जाते है , और कुछ विशेष नीच लोगो को इसमें भी चश्मा चढ़ जाता है , हिदू का मुसलमान का और सनातन और पश्चिम सभ्यता का उन जैसो से क्या उम्मीद किया जाए ?
अब सोशल मीडिया पर ज्ञान की धर्म की बाढ़ आ जायेगी ये लेलो मग़र वो कर दो वो कर दो देश साथ खड़ा है हज़ारो बेमतलब की बात जो आप के दिमाग़ में बैठा दी जाएगी ।
कुछ लोग जो जिंदा है वो बेचारे तख्ती और कैंडल और नारे लगा के कम से कम अहिंसा वाली प्रतिरोध ज़ाहिर करेगे ।
मग़र कुछ लोग है जो बोलेगे की लिंग काट दो नपुंसक बना दो, बीच चौराहे पर काट दो जला दो, मग़र जिस जगह ये विचार लाये है वहा 4 लोग की गवाही देने पर एक स्त्री के बात का भरोसा किया जाता है,
मग़र हम कब जागेंगे, जब हमारे घर के लोग का नम्बर आएगा तब बोलेगे क्या ?
और काफ़ी लोग पत्रिका में सोशल मीडिया व्हाट्सएप पर लिखेंगे और ह मैं भी शामिल हूं उनमे क्योंकि हमें कमाने खाने और सुचारू जीवन चलाने में व्यस्त हो जायेगे ।
और क्या भूल जाएंगे कि किसे न्याय मिला और नही मिला, क्योंकि व्यवहारिक तौर पर हम वापस अपने काम पर लौट जाएंगे ।
और इंतजार करेगे अगले वारदात की लेकिन आप नही जानते कि वो आप के घर भी हो सकता है ।
मुझे आशा ही नही पूर्ण विश्वास है कि जाँच सालो चलेगी पीड़ित के घर वाले पिसते रहेंगे,
और ये खेल चलता रहेगा किसी दिन 1 या 2 मिनट का क्लिप आ जायेगी या किसी अखबार के अंदर के पेज पर लिख के आ जायेगा कि कैसे वो लड़की ही ग़लत थी , या सब 18 वर्ष से कम है, और भी कई दाव पेच लगा कि बच जाएगा ।
और जब तक इस केस की सुनवाई होंगी तबतक ऐसे और वारदात अंज़ाम तक पहुँचा दिए जाएंगे ।
लिख देने से तख्ती पकड़ लेने से नारे लगा देने से न कानून बदल जायेगा न ही उसकी असलियत और हज़ारो ऐसे मसले होते रहेंगे कुछ मामले प्रकाश में होंगे कुछ नही ।
इसे रोकने के लिए बस नैतिकता और कड़क और जल्द सज़ा ही एक अंतिम मार्ग है ।
मग़र ये होगा नही क्योंकि ये संभव ही न है ।

©अशोक द्विवेदी "दिव्य"


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