विवाह के लग्न चल रहे हो और बड़े घर और उच्च मध्यम वर्गीय परिवार अपने लड़के की शादी में लड़की ( रंडी ) नाच न करे , तो उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा कम हो जाती है ।
कम से कम 25 हज़ार से शुरू और जितने तक आप की इच्छा है
उतने तक का नाच किया जा सकता है ।
ये बिहार , उत्तर प्रदेश के गाँव और गाँव से सटे शहर में लोग इसके बिना बारात को अधूरा मानते है ।
जरा सोचिए कि हम किस हद तक दोहरे चरित्र के समाज मे जी रहे है ।
एक लड़की जो दुल्हन बन के किसी के यहाँ जाएगी बड़ी अच्छी पवित्र और न जाने कितने सम्मान के साथ वही उस बारात में कुछ लड़कियां नृत्य के नाम पर अंग प्रदर्शन गन्दे इशारे और भी कई बेहूदे हरकते करते है ।
और कुछ पुरुष जो पैसा देते है ,
वो उनके नृत्य कला के लिए नही बल्कि अश्लील इशारे और छुवन के लिए देते है ।
पूरी रात नशा नृत्य चलता है ।
सुबह सब अपने रास्ते ।
सारी अश्लीलता वाली हरकत बारात में पुरूष करते है, लेकिन वैश्या उन लड़की बोलते है ।
वो तो अपनी जगह सही है पर आप स्वयं में कितने मर्यादित व्यक्ति है??
क्या आप उस वक़्त ये मूल मानवीय संवेदना भूल जाते है ।
की क्या बीतती होगी उनके ऊपर वही वो पैसों के लिए नाच रही है तो रंडी और घर मे कोई लड़की नाचे तो कला वाह रे दोगली सोच
क्या कभी आपने सोचा है कि कितना दोहरेपन का जीवन वो जीती होगी ।
बिना मर्जी के नाचना बिना इजाजत गुप्तांग को आक्रामक छुवन , और भी बात है मगर ये सभी
बात हमारे लिए आसान और सामान्य बात हैं ।
असल मे सारी महिला की बनावट समान ही होती है ।
बस सब के लिए आप के नज़रिए अलग है ।
जैसे माँ को देख के सम्मान , बहन बेटी को द्वख के वात्सलय और प्रेमिका को देख अलग ही प्रेम भाव मग़र इन्हें देख के बस हर उम्र हर व्यक्ति को कुछ अपवाद को छोड़ के ऐसे ही भाव मौजूद है ।
मगर ये ऐसा बुराई है जो अगर खत्म भी हो तो कई घर के चूल्हे न जल सकेंगे ।
नृत्य की कला है इसका सम्मान करिये , मग़र लोग अपने गन्दी मानसकिता का परिचय देते है ।
और यही वो लोग दम्भ भरेंगे की हम महिला की इज्जत करते है, ये वही लोग है जो कपड़ों से चरित्र रंग से दोगलापन तक और चाल भर से लड़की कुँवारी है या कितनो के साथ सोई है ।
वाह रे दोहरे चरित्र के शरीफो , वास्तव में जब शराफत के कपड़े उतरते है, तो सबसे ज्यादा मजा शरीफ़ को ही आता है ।
ख़ैर कम से कम शिक्षत लोग इस प्रथा को रोके ।
मग़र इनसे भी क्या उम्मीद ये तो स्वयं कई मामलों में दोहरा मापदंड रखते है ।
खत्म नृत्य नही करिये , बल्कि दोहरा चरित्र और अश्लीलता बन्द करके स्वस्थ समाज निर्माण मे अपना योगदान दे ।
©अशोक द्विवेदी "दिव्य"
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