जब समाज मे जब कोई बालक या बालिका को एक दम्पति जन्म देते है , तो हज़ारो ख्वाइशें उमड़ने लगती है ।
उसमे से ज्यादा कोई ख्वाइश बलवती है , तो वो है , उनकी शिक्षा ।
कुछ डॉक्टर तो कुछ इंजीनियरिंग तो कुछ होटल मैनजमेंट बड़े कोर्स पढ़ाने के लिए उत्सुक हो जाते है ।
मग़र ये स्वप्नों वाले दिन ज्यादा वक्त तक न टिकता है ।
शुरुआत के कुछ वर्ष तो ठीक और सामान्य से थोड़ा कठिन लगता है, मग़र जैसे ही बच्चे की शिक्षा बढ़ने लगती है। वैसे वैसे अभिभावकों के माथे पर बल पड़ने लगता है ।
क्योंकि उन्हें तब वाकई इस बात का अहसास हो जाता है, की शिक्षा पर भी धनाढय वर्गों का कब्जा है ।
आप कहेंगे कि नही नही सरकारी वाले बालक भी बहुत बड़ा कर देते है , ह करते हैं पर कितने 1 लाख में से 1 अगर हो जाये तो उससे कुछ न होगा ।
पेपर तो बहुतेरे बेचते है पर क्या सब कलाम बन गए ??
फिर समुंदर में एक बूंद वाली बात कितनी सार्थक और वास्तविक है ?
अब जरा सोचिए कि एक साथ दो बालक का दाखिला अलग अलग स्कूल में होता है, एक का बड़े नामी गिरामी और एक का सरकारी गाँव वाले स्कूल में ।
जो बड़े स्कूल का लड़का है, उसके हावभाव और सरकारी स्कूल के लड़के का व्यवहार में जमीन आसमान का फ़र्क दिख जाएगा ।
एक बात करेगा इंग्लिश में तो एक बात करेगा क्षेत्रीय भाषा मे बात करेगा ।
एक को देख आप गला लगा लेने का मन होगा,
सरकारी स्कूल के बालक को देख आप बोलेगे यार ये ऐसा क्यों है ??
फर्क तो पड़ेगा न साहब एक पैसा दे कर पढ़ रहा है, और एक पैसा लेके ।
एक हर रोज मैनेजमेंट के हिसाब का कपड़ा पहनता है , खाना भी उनके हिसाब का खाता है, और हर महीने कोई न कोई प्रतियोगिता सम्भयता मिलह विज्ञान मेला में भाग लेता हूं और दूसरी तरफ सरकारी स्कूल का छात्र बस भोजन मिल जाये मिड डे में और साल में 2 कपड़ा और 26 जनवरी और 15 अगस्त और 2 अक्टूबर को लड्डू ।
फिर बात होगी समानता की सरकारी योजना की आखिर जमीन पर इसका असर कितना आता है, सरकारी स्कूलों में जो शिक्षक है वो समय से न आते है न ढंग से पढ़ाते है मगर सरकार इनपर करोड़ो रुपये खर्च करती है।
लाभार्थी सिर्फ कुछ ही होते है ।
जब अच्छी शिक्षा न होगी तो नैतिकता की बात और रोजगार की बात सरासर बेईमानी होगी ।
क्योंकि जब आधार ही मजबूत न होगी तो उसके ऊपर का निर्माण धराशयी ही होगी ।
जब हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी अच्छी है पारदर्शी है तो फ़िर इतने सारे प्राइवेट स्कूल की क्या आवश्यकता है ??
क्योंकि हमारे देश के धनपशु लोग ने नब्ज पकड़ लिया है एक तो शिक्षा और भोजन एक दम अनिर्वाय है, जितना सास लेना ।
और इसके वजह से इनका ये कारोबार अच्छा चल रहा है क्योंकि सरकारी तंत्र का हाल किसी से छिपा न है ।
जब हमारी हर नियम सरकार इतनी सही औऱ व्यवस्था बेहतर है तो फ़िर क्यों सरकारी संस्थाओं से ज्यादा बेहतर व्यतिगत संस्था है ।
सोचिए जरा ।
©अशोक द्विवेदी "दिव्य"
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