हमारे देश मे बहुत बहुत भिन्न भिन्न धर्मिक विचार और दर्शन है , जिनका अलग अलग रास्ते है, मग़र लक्ष्य बस एक है ।
"आनंद और मोक्ष"
मग़र बस बस जान लेना या पालन करना या मानने भर से नही होता है ।
आप वास्तव में वो कर रहे है , जो धर्म बता रहा है या बस कर रहे है , और तर्क का स्थान नही है तो माफ करिये आप बस मान रहे है जान नही रहे है ।
जिस भी धर्म को आप मान रहे है ।
आज कल लोग बौद्ध दर्शन को ज्यादा अपना रहे है , हिन्दू धर्म के काफी लोग बौद्ध धर्म अपनाये ।
मग़र क्यों ??
कुछ बोलते है , की उन्हें अपने पूर्व धर्म मे कुछ न मिला इसलिए वो बदल रहे है ।
चलिए बढ़िया है मगर क्या आप वास्तव में वो अपना रहे है जो अपनाने के लिए आप अपने मूल को छोड़ रहे है ।
ज्यादातर लोग जो बदले है वो बस प्रतीकात्मक विरोध के लिये बदले है जिसमे कुछ अंश राजनीति का भी है ।
मैं ऐसे लोग को जानता हूं जो बन तो गए मग़र उसका मूल तत्व को नही समझ पाए ।
जिस जिस का विरोध गौतम बुद्ध ने किया वो उन्हें अब तक पकड़े बैठे है तो फिर बदलाव का क्या प्रयोजन हुवा??
बस इसलिए कि हम विरोध करेंगे ।
आप किसी भी धर्म को अपनाए आप की संवैधानिक अधिकार है , मग़र नैतिकता के आधार पर आप शून्य हो जाये तो क्या लाभ ।
आप जिसे भी माने या अपनाये आप की मर्जी मग़र उनकी बात का पूर्णतः स्वीकृत करे ।
©अशोक द्विवेदी "दिव्य"
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