आज पूरा अख़बार सोशल नेटवर्किंग साइट्स और व्हाट्सअप कि स्टेट्स सभी जगह मुँशी प्रेमचंद जयंती के अज्ञात खुशी और बधाई से लबरेज़ हो चला है।
ख़ैर कल तक उतर जायेगा ये नशा कल किसी और बात की बधाई दी जाएगी।
भारत में जयंती का जलवा हैं, मजे की बात ये भी हैं,कि जिन्होंने अपने स्कूल के बाद प्रेमचंद का एक कहानी या उपन्यास तक न खरीदा न पढ़ा ।
वो भी आज इस खास मौके पर चूकना नहीं चाहता है और अपना नाम लेखकों के सूची में शामिल करा देने के जद्दोजहद में लगा है ।
वैसे मुंशी जी को जनपक्षधर लेखक कहना एक दम न्यायिक हैं।
लेकिन अगर आप ने इनकी कहानी उपन्यास केवल मनोरंजन के लिए और रेल तथा बस का सफ़र काटने के लिए पढ़ा है तब आप ऊपर वाले लाइन में शामिल है ।
ख़ैर मुंशी जी ने अपनी कलम से उस समय चर्चित कुरीति गरीबी मेहनतकसो की समस्या का शब्दचित्र रेखांकित कर दिया ।
और निष्पक्ष तरीके से समाज के भीतर के बात को मुद्दों और समस्याओं को अपने लेखन के जरिए दुनिया के सामने साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया।
जो सदैव प्रासंगिक रहेगा क्योंकि उनके लिखने से समाज की कुरीति में गिरावट आई हैं लेकिन
वो समस्या से हमेशा के लिए पीछा छुड़ा पाना असम्भव कार्य है ।
क्योंकि बुराई कम या ज्यादा हो सकती है मगर ख़तम नही हो सकती वर्ना सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त हो जायेगी अपवाद की बात अलग है ।
जितना सुंदर स्त्री विमर्श इन्होंने ने लिखा है शायद ही किसी लेखक कि कलम उतनी दम रखती हो कि स्त्री मन को स्पर्श कर के उनके भाव को अपने स्याही से कागज पे उतार सके।
मेहनतकश की भावना को जितना जीवंत भाव में इन्होंने ने कागजों पर सहेजा है वो अद्वितीय है।
जन्मदिन कि शुभकामनाएं
मेरे प्रिय लेखक मुंशी जी
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