सावन का पावन माह के अवसर पे मूल रूप से शिव भक्त और कावड़ यात्रा का और जल शिवलिंग पर चढ़ाने का एक संस्कृतिक और आस्था का विषय हैं।
वैसे वास्तविक रूप से देखा जाए तो केवल बाबा बैजनाथ जो देवघर झारखंड में है उनके ऊपर सुल्तानपुर से जल ले कर पदयात्रा कर के शिवलिग पे जल चढ़ाने की एक परंपरा
है।
लेकिन हर क्षेत्र में अलग अलग परंपरा है कोई बक्सर से जल लेकर गुप्ताधाम जाता है तो कोई हरिद्वार से दिल्ली हरियाणा अपने मोहल्ले या स्थान विशेष शिवालय में जल चढ़ाता है।
लेकिन राजनीत और जातीय दंभ का प्रदर्शन आप ज्यादातर मामलों में दिल्ली हरियाणा आगे है ।।
अगर आप को जातियों को पहचान करनी हो खासकर उन लोग की जो भगतसिंह उधम सिंह भीमराव अंबेडकर और इस तरह के क्रांति के लिए समर्पित थे उन्हीं लोग को मानने वाले अपने जातीय प्रदर्शन करते है ।
खूब तेज कानफोडू गानों का मतलब डीजे पर भोले नाथ का बिना सर पैर का गाना बजाते हुवे न की भजन कीर्तन करते हुए हरिद्वार कावड़ यात्रा करते हैं।
शिवभक्त के नाम पर गांजे और भांग सेवन और अवैध खरीद बिक्री खूब होती है ।
अभी हाल में ही एक जवान को कावड़ यात्रा करने वाले अराजक तत्वों ने इतना पीटा की उसकी जान चली गई ।
दिल्ली से हरिद्वार के रास्ते भर आप अलग अलग बिरादरी के स्लोगन झंडो को देख सकते है।
कोई भीमराव अंबेडकर जी के नाम का कावड़ यात्रा कर रहा है या तो कोई १२१ लीटर गंगाजल लेकर हरिद्वार तक भगत सिंह के फोटो वाली टीशर्ट पहन कावड़ यात्रा में लगा है।
लेकिन क्या ये विचारणीय नही हैं ?
की श्रद्धा में जातीय प्रदर्शन और राजनीति करना तथा नशा और कानफोडू संगीत क्या सही हैं ?
आप अपनी श्रद्धा भक्ति भाव या आस्था के मामले है उसे बेहतर तरीके से क्यों नही समायोजित करते हैं ?
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