अगस्त क्रांति का महीना है अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति भी अगस्त में शुरू हुई थी पर किसे मालूम था कि इसी श्रृंखला में एक नाम आगे और जुड़ेगा ।
जिसका नाम था खुदीराम बोस कम उम्र में शहीद होने के कारण भगत सिंह जी और उनके संग चर्चित व्यक्तित्व के बारे में सारा देश जान गया और कई अन्य देशों में भी लोगों की चर्चाएं करने लगे लेकिन खुदीराम बोस के बारे में ज्यादातर लोगों को नहीं जानकारी है ।
यह कम उम्र में शहीद होने वाले सबसे पहले क्रांतिकारी थे , क्योंकि भगत सिंह को भी फांसी की सजा 23 साल में हुई थी पर इन्हें 19 साल में ही हो गई थी मामला कुछ इस तरह है।
बिहार के मुजफ्फरपुर में एक नया मजिस्ट्रेट आया था जिसका नाम किंग जॉर्ज फोर्ड था वह भारतीयों के साथ बहुत ही ज्यादा दुर्व्यवहार करता था ।
और छोटी मोटी गलती हो जाने पर वह कड़ी से कड़ी सजा देता था, इस बात के विरोध के स्वरूप कोलकाता में क्रांतिकारियों की एक बैठक हुई ।
जिसमें किंग जॉर्ज फोर्ड को यमराज तक पहुंचाने का प्रबंध की चर्चा हुई उसी चर्चा में खुदीराम बोस भी शामिल थे ।
उन्होंने मन ही मन इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने का निर्णय कर लिया।
वह वापस मुजफ्फरपुर आए और किंग जॉर्ज फोर्ड पर नजर रखने लगे उन दिनों किंग जॉर्ज फोर्ट एक लाल रंग की बग्गी से हर रोज रात को क्लब जाता था खुदीराम बोस ने यही समय उचित समझा और उन्होंने उसके बग्गी पर बम फेंक दिया लेकिन दुर्भाग्य से उस दिन किंग जॉर्ज फोर्ड क्लब गया ही नहीं था,उसमें दो अंग्रेज महिलाएं थी जिस बग्गी को बम से उड़ाया गया था ।
जल्दी खुदीराम बोस जी पकड़े गए और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई 11 अगस्त 1908 को वे फांसी पर झूल गए ।
विडंबना है कि ऐसे वीर सपूतों को कम लोग ही जान सके लेकिन इन्होंने जो क्रांति पथ में अपना योगदान दिया है वह अद्वितीय है तथा यह भी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा की क्रांति जगत के इतिहास में और क्रांति वीरों की सूची में सबसे कम उम्र में शहीद खुदीराम बोस जी ऐसे वीर सपूतों को सलाम है जिन्होंने स्वयं की आहुति दे कर के हमें आजादी का महत्व समझाया और हमें आजादी के युद्ध में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और इसके महत्व को समझाया ताकि हम जल्द से जल्द आजादी के पथ पर बढ़ सके और देश आजाद कराने में अपनी भूमिका सुनिश्चित करें ।
आज की युवा पीढ़ी नशे वीडियो बाजी दिखावा और कॉर्पोरेट जगत के द्वारा तैयार किया हुआ, जीवन शैली जी रहे हैं, और केवल सोशल साइट पर ही संघर्ष कर रहे हैं हमें समझना होगा कि जो व्यक्ति सामाजिक कार्य में अपना योगदान दे रहा है वह खैरात नहीं कर रहा है, बल्कि उसके ऊपर एक सामाजिक जिम्मेदारी है जिसका उसे एहसास है और जिसका कर्तव्य वह निभा रहा है।
खुदीराम बोस जी ने जो अपने कर्तव्य को निभाए और भारत देश का हर आज़ाद युवा और जनता उनके इस कार्य एक लिए उन्हें नमन करेगी।
©अशोक द्विवेदी "दिव्य"
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें