भारत सदैव एक धर्म कि स्थली रही हैं।
इसकी उदारता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं की इस धरती पे हर तरह के धर्म का और ज्ञान और तर्क को सम्मान और जगह दोनो दिया गया जो प्रायः और देशों में नही मिलता है ।
भारत देश में हर क्षेत्र में एक विशेष देवी या देवता आम जन मानस के आराध्य एवं श्रधानीय होते हैं।
क्योंकि हर क्षेत्र विशेष की अपनी सामाजिक ढांचा और अलिखत कानून और समस्या हैं।
इसको ऐसे समझिए की उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड इन तीनो में हिंसा ज्यादा है अशांति ज्यादा है तो वहा प्रभु शिव कि उपासना पूजा तथा ज्यातर कुल देवता हैं।
क्योंकि वे लोग जो अशांत है वो शांति की तलाश में महादेव की शरण में जा कर शांति पाना चाहते है ।
इसी तरह पाश्चिम के इलाकों में शक्ति का बड़ा मान है तो पश्चिम उत्तर प्रदेश से हरियाणा और कुछ इनसे सटे हुवे इलाके में मां जगदम्बा और हनुमान जी एवम् खाटू श्याम जी ज्यादातर जनमानस के श्रधानिय है।
उसी प्रकार आप मुंबई और गुजरात और उनसे सटे इलाकों का आकलन करेगे तो पाएंगे कि वे धन प्रधान क्षेत्र हैं ।
इसलिए वहा महालक्ष्मी देवी एवम गणेश जी के प्रति वहा के लोग को ज्यादा आदर और श्रद्धा है।
इसी तरह आप दक्षिण भारत के और रुख करते है तो वहा विलासिता सुंदरता और कला ज्ञान का सामाजिक ढांचा में महत्वपूर्ण योगदान है।
वहा कार्तिकेय जी अम्बा देवी की प्रति लोगो कि विशेष आस्था है ।
अगर हम ऊपर कि बातो का अवलोकन करे तो हम समझ पाएंगे की हमारे देवी देवता किस तरह से हमारे प्रतीक है समाज के विचार के सामाजिक ढांचा में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं।
हमारे समाज में धर्म की जो नीव है वो बहुत सुंदर है लेकिन बाजारीकरण और आडंबर ने इसे और के लिए जटिल और स्वयं से दूर रहने के लिए सुरक्षित कर लिया गया है ।
हम अपने धर्म के प्रतिको मूल्यों और विचार को समझ नही पाए कि उनके लिखने का प्रतिको का स्मारकों का अर्थ है तब तक हम बस ऊपरी सतह को ही जान पाएंगे न की उस मूल को जो वास्तविक अर्थ है धर्म का जो हमारे जीवन का अनुक्रमणिका है ।
ये मेरे अपने यात्रा अनुभव और निजी समझ भर ही है ये किसी बात की पुष्टि नही करता है।
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