संकट में पत्रकारिता

आज के हालातों में स्वतंत्र पत्रकारिता ख़तरे में आ गयी है अब पत्रकारिता बहुत ही कम निष्पक्ष देखने को मिल रही है ।
देश मे स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकार पर लगातार जानलेवा हमला हो रहा है और क़ई जगह तो जान दे कर इस निष्पक्षता कि कीमत चुकानी पड़ जा रही है पत्रकारों को 
क्या ऐसे दौर में पत्रकार और उनकी कलम सुरक्षित है ये ?
 ये हमे सोचना होगा 
अब पत्रकारिता चाटुकारिता में बदल रही हैं। लेक़िन उन सभी साथी को सलाम है जो अभी भी बिकाऊ न है और निष्पक्षता के पक्षधर के तौर अडिग है ।
लेकिन हमें सोचना होगा कि आख़िर इतने बड़े  देश के लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाली पत्रकारिता आज अपने निष्पक्ष वजूद के लिए जूझ रहा है हमे वो गणेश शंकर विद्यार्थी का दौर याद करना होगा जब सच हर कीमत पर जनता तक अख़बार के माध्यम से आती थी ।
अब तो केवल विज्ञापन और एक पक्षीय ख़बरो से अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पटी हुई है ।
क्या वास्तव में आज पत्रकारिता स्वतंत्रता के साथ जन मुद्दों को उठा रही है ? क्या वास्तव में पत्रकार सटीक मुद्दों पर जनता के ओर से सवाल उठा रहे है ?
पत्रकारिता के स्वतंत्रता पर पुर्नविचार करने का समय आ चुका हैं नही हो वो वो वक़्त दूर नही जब चौथा स्तंभ धराशाई हो जाएगी ।
एक समय में पत्रकार के कलम से गलत को भय लगता था पर अब ऐसा न रहा लेकिंन साधुवाद है उन पत्रकारों को जो इतने बुरे दौर में वेब पोर्टल के जरिये वास्तविक और क्षेत्रीय भाषाओं में खबरों को जनता तक पहुँचा रहे है।
देश मे बहुत से आंदोलन या इतने बड़े मसले होते है मग़र उसकी ख़बर आमजन मानस तक नही आ पाती हैं । जिसका साफ तौर पे मतलब है कि मीडिया अपने मूल कर्त्तव्य से काफी हद तक विमुख हो रहा है ।
 सलाम है उन जुझारू पत्रकारो को जो बिना अंजाम के परवाह के सच के साथ खड़े है ।

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