भारत की राज्य बिहार में बेरोजगारी का आलम देखते ही बनता है और युवकों की भीड़ आप पटना के शहरों में देख सकते है।
जो हर सरकारी नौकरी का फर्म बस इसी उम्मीद से डालता है कि शायद इस बार ये नौकरी हाथ लग जाये ।
इस आशाओं को कुछ ज्ञानी और पूँजीपति भुनाने से बाज़ नही आते है।
सब के अपने तरीके है कोई रूम के लिए कोई खाने के नही तो कोई यातयात के लिए सब अपने हिसाब से उन युवकों के मजबूरी का फायदा उठाने से पीछे नही है, मैं ये तो नही कहता कि मुफ्त हो जाये लेकिन इन सब मूल सुविधाओं का मूल्य आसमान छू रहा है।
आखिर में वो एक सपना सजोया लड़का जिससे कई की उम्मीद जुड़ी है बस वो उम्मीद पैसों के आभाव वक़्त के मार और भ्रटाचार के भेंट चढ़ जाता है।
उसके पास घर लौटने और या छोटे काम को कर आजीविका चलाने के अलावा रास्ता नही बच जाता ।
आखिर क्यों हमारी व्यवस्था इतनी खोखली और पूँजीवाद इतना हावी है।
पढ़ाने वाला करोड़ो में रूम वाला लाखो में यातायात वाला भी काफी पैसे जोड़ लेता है और जो नौकरी के सपने में आता है वो ख़लीहर लौट जाता है।
समस्या एक ये भी है कि इसमें एक वर्ग वो भी आते है जो महज मस्ती आनंद के लिए आते है और धन खर्च कर चले जाते है।
उनके लिए तो कोई बात नही पर जो वास्तव में
किसी को फर्क नही पड़ता क्योंकि हर साल ऐसे ही छात्रों की नई फसल चरचराती रहेगी और ये पूंजीवादी के जेब भरती जायगी और नौकरी भ्रटाचार के भेंट चढ़ती रहेगी ।
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