बौद्धिक राजनीति बनाम धनजन राजनीति

 लगभग हर युवा देश के राजनीति के गतिविधियों पर अपनी नज़र रखता है ।
जो देश हित मे ही है।
मगर एक बड़ा वर्ग राजनीति को नस्लवाद बाहुबल और धन के बल पर राजनीति के दिशा और दशा को बदलने में काफी सक्षम है ।
लेकिन ये दुःख की बात भी नही है, क्योंकि बहुत बड़ा वर्ग काफी हद तक राजनीति गतिविधियों पर ध्यान नही देता ।

उच्च वर्ग के लोग बस जीतने वाले पक्ष से मतलब है ।
और गरीब तबके के लोग बस शराब मुर्गा और इस तरह की खाद्य सामग्री पर वोट देना होता है । और वो करे भी क्यों न आखिर चुनाव के बाद नेता जी उस तरफ नज़र न आएंगे ।

तो वो लोग भी तत्काक लाभ ले कर ख़ुश हो जाते है ।
अब बात आती है बौद्धिक क्षमता रखने वालों की तो उनकी तादाद काफी कम ही है ।

 उन्हें अपने लोग जी तरहीज ही नही देते है।  
और आखिर में वो भी थक कर पक्षधर बन जाते है , जबकि उन्हें स्वतन्त्र होना चाहिए ।
मगर आज की जनता के दिमाग मे बाजारवाद और प्रचार प्रसार का ऐसा जकड़न है कि वो वास्तविक स्थिति से बिल्कुल अनभिज्ञ होते है ।

 जिन्हें भान है उन्हें मूर्ख कहकर टाल देगे या विरोधी बोल के उसे गलत साबित करेगे ।
मग़र मौजूदा स्थिति में केवल गलती सरकार की नही गलती जनता की ही है ।
क्योंकि नागरिक शास्त्र में लिखा है ,
"जनता के लिए जनता द्वारा चुना हुआ ही जनता पर राज करता है "

आज के हालात में ये पूर्ण रूप से सार्थक है ।
क्योंकि जो लोग चुनाव में धनबल दिखा कर जीत जाते है वो अपना लगाया पूँजी कई गुना वसूल लेते है ।
मग़र जनता को फ़िर भी पसन्द होते हैं ।
व्यक्ति विशेष से बेहतर है उन्हें चुने जिन्हें आप जानते है ,
 और जो वास्तव में बेहतर हो दिखावे ओर न जाये ।
©अशोक द्विवेदी "दिव्य"

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