अगर लिखते नही तो मर जाते है आप अगर लोगो से नही मिलते या फ़िर कोई भी सामाजिक या राजनीतिक चर्चा नही करते हैं कोई आंदोलन कोई हकदारी की आवाज नही उठाते या नही चलती आपकी कलम अथवा आप अगर भी नही खींचते अपने खुशी के पल की तस्वीर तो जीवित नही है खुश नही है आप जीवंत नही बल्कि मशीनी मनुष्य हो चुके है । पूरी तरह से यांत्रिक और अगर कोई यांत्रिक नही है तो उसको परिहास खूब होता है। ऐसा सामाजिक ढांचा का विकसित कि जा रही रही है।
लेखनी आप के जीवन यात्रा का पद मार्ग है आप कब खुश हुए कौन पल खूब दिल को भाया कौन सा पल आप को खूब चुभा कौन सी आप के समय में समस्या थी कैसी सरकार और व्यवस्था थी ये अगली पीढ़ी को बताने के लिए लिखना जरूरी हैं
क्योंकि याद धुंधुली हो जाती है जुबान कमजोर हो जाती है लेकिन शब्द सदैव जीवित और प्रासंगिक रहते है।
ये अपने संग भावना की पोटली बंधे रखती है जो अगली पीढ़ी या मौजूदा समय में आप के मित्रगण साथी जो इसे पढ़े तो वो पोटली उन्हें मिल जाता है संभवत
ये दायित्व है हर शिक्षित व्यक्ति का कि वो लिखे न लिखे तो तस्वीर खींचे क्योंकि तस्वीरों मे कैद होते है लम्हे जो कभी कमजोर नीरस या याद विहीन नही पड़ते जब भी आप या अगली पीढ़ी उससे देखती है तो उस लम्हे के एहसासों को महसूस कर पाती है।
नही तो गायिए चित्र बनाइए या यात्रा करिए
लेकिन बैठे मत रहिए यात्रिक बनाना मत स्वीकार करिए ।
क्योंकि जीवन के इतने रंग और आयाम हैं जिनका अनुभव आप को किसी एक तरह के जीवन शैली से नही मिल सकता है।
आप के भीतर की जो कलाकर है चाहे जिस भी विधा में हो उसे उन्मुक्त रहने दीजिए, अब इसका ये अर्थ नही है कि आप जीविकापार्जन छोड़ कर के ये सब करे
अगर उससे ही जीविकापार्जन हो जाए तो बेहद बढ़िया बात है ।
अगर नही होता है तो जो भी आप काम कर रहे है उसी के संग अपनी कला को भी समायोजित कर के चले ताकि आप को जीवंत होने के अनुभव मिले न की यांत्रिक मनुष्य होने का अहसास हो।
क्योंकि आप जीवंत है केवल जीवित नही ।
©अशोक कुमार द्विवेदी "दिव्य"
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