बिखरते वैवाहिक जीवन

भारत कि सामाजिक ढांचा में विवाह का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
लेकिन आज के आर्थिक और बाजरीकरण के दौर में ये संस्था भी पूर्ण रूप से बाजरीकृत हो चुकी है ।
जिस के वजह से ये रिश्ता भी घुटन और टूटन के दौर से गुज़र रहा है, ऐसा आज कल आम तौर पर देखा जा रहा है कि नवविवाह दंपती भी अलग हो रहें है या तो क्लेशपूर्ण जीवन अथवा कचहरी परिसर में दौड़ते नजर आ रहे है ।

ये भी एक हास्यपद बात है कि शादी में खूब खर्चे हो रहें है पर रिश्ता कमजोर नीरस होते जा रहा है।
इसके भी कई कारण है जिसमे दहेज,सरकारी नौकरी, सोशल मीडिया पर दिखावा और मातापिता के हस्तक्षेप इंटरनेट और घटिया फिल्म और अहंकार तथा बाजार आधारित खुशियां भी शामिल है ।

इस वजह से युवाओं का इस वैवाहिक जीवन में भरोसा कम होते जा रहा है,और यौन संबंध में भी अनैतिकता बढ़ती जा रही है जिस की खबर अक्सर समाचार पत्रों और टीबी चैनल मे देखने को मिलता है ।

बिहार पूर्वी उत्तर प्रदेश झारखंड में सरकारी नौकरी वाले लडको की विवाह के लिए लाइन लगी होती है और कॉरपोरेट सेक्टर कृषि व्यापार आदि के क्षेत्र में काम करने के वाले लडको कि वैवाहिक जीवन या तो शुरू नही होता है या होता है तो काफी तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। 

क्योंकि इन क्षेत्रों में लडकी के पिता चाहे खुद जो कुछ भी करते हो मगर उनकी पहली पसंद सरकारी दामाद है चाहे वो कैसा भी हो
या यूं कहे हज़ार कमी के बाद भी सरकारी दामाद स्वीकृत है लेकिन अच्छे गुणों और प्राइवेट काम करने वालो उतने पसंद नही किए जा रहे है।

जिस कारण से एक बड़ा युवाओं का संख्या विवाह सुख से या तो वंचित रह जाती है या फिर वो विवाह के बाद क्लेशपूर्ण जीवन जीते है।

ये एक तरह से सामाजिक समस्या है इसे सरकार नही बल्कि समाज ही दुरुस्त कर सकता हैं विवाह के बाद लड़की के घर वालो का अति हस्तक्षेप के कारण लडकी ससुराल पक्ष में जुड़ भी नही पाती नतीजन नए रिश्ते टकराव और टूटन के दौर से गुजरने लगे है।

वैसे इसमें दिखावा अहंकार और खुद को सही साबित करने के होड़ में रिश्ता को खीच कर बाजार तक लाने में भी गुरेज नहीं रह गया है।
जिस वजह से विवाह के सुंदरता पर कालिख पूत जा रही है और पति पत्नी दोनो का जीवन नीरस और तनावपूर्ण हो जाता है ।

लेकिन अहंकार प्रभाव इस क़दर हावी होता है कि एक पक्ष दूसरे पक्ष को नीचा और गलत साबित करने में कोई कमी कसर नही छोड़ता है।

अगर ये इसी तरह चलता रहा तो आने वाले दशकों में विवाह संस्था औपचारिक यांत्रिक खोखली और धराशाही हो जाएगी ।
अगर हमे इसमें सुधार लाना है तो समाज प्रत्येक व्यक्ति को अपना सहयोग देना होगा
क्योंकि ये समस्या सामाजिक हैं न की सरकारी है । 

बेहतर यही है छोटी मोटी बात बढ़ने न दिया जाए अलगाव न किया जाए पति पत्नी का क्योंकि साथ रहेगें तो कुछ वक्त में गुस्सा नाराजगी ख़तम हो सकती है ।

क्योंकि पति पत्नी का झगड़े पानी के बुलबुले के तरह होता हैं जो सतह पर आते खत्म हो जाए है, लेकिन जब दोनो के बीच किसी के भी परिवार मित्र का हस्तक्षेप से मामला बनने से ज्यादा खराब हो जाता है ।

अगर कोई गलती किसी भी पक्ष से हो जाए तो उसे समझाया संभाला जाए न कि पति पत्नी को अलग कर दिया जाए उसे खीच के कोर्ट कचहरी में न लाए बल्कि खुद बैठ कर के आपस में सुलह कर लेना ही बेहतर तरीका है।
क्योंकि जो लोग विवाह भोज में आशीष देकर जाते है वही लोग बाद में रिश्ता टूटने पर दोनो पक्ष में हर बात को मसाला लगा कर और एक दूसरे में कमी बताते अघाते नही है ।

क्योंकि जब तक दोनो पक्ष अपनी गलती नही सुधरेंगे और यूंही अपने अहंकार को बीच में लाए तो इसका हल नहीं हो पाएगा और रिश्ते यूंही टूटते बिखरते रहेंगे। 


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