वैराग्य एक भावपथ

जीवन के ख़ुशी के समय में यात्रा का महत्व और अपने दीनहीन समय में यात्रा का अर्थ एक दम से बदल जाता है।

जहा एक तरफ श्रृंगार रस का स्वाद्न होता है वही दुख में दर्शन महत्व और दुनिया का अर्थ समझ आता हैं।

अक्सर यात्रा भ्रमण करते हुवे जब आप मथुरा वृंदावन पहुचेगे तो माधव को दूंढते तो वहा आप को उनके द्वारा दिए शिक्षा का अनुभव होगा ।

वैराग्य क्या किसी स्थान पर जा के या किसी व्यक्ति विशेष के सानिध्य में प्राप्त होने वाला द्रव्य नही है । बल्कि आंख बन्द करके नही आंख खोल के दर्शन करने कि जरूरत है अगर हम उनके द्वारा दिए वैराग्य का अर्थ समझना चाहते है।

जब आप दुःख में यात्रा करते है तब ये दुनिया आप को पारा सी लगने लगती है । और पारा माया के तरह है,
क्योंकि जैसे ही आप उस पर हाथ रखते है वैसे ही वो हट जाता है और एक बिजली सी हमारे अंतर्मन में कौंध जाती है और हम वास्तविक संसार का अर्थ रहस्य समझने लगते है।

 यात्रा और दर्शन से  दुःख और भ्रम के जाल कटने लगते है और मन सांसारिक होते हुवे भी वैरागी होने लगता है और उसका मन हमेशा माधव के चरण में लगा रहता है उस व्यक्ति का तन कही भी हो मगर मन तो उसका वृंदावन में ही रहता है।

इसी को शायद वैराग्य पथ का पदार्पण समझा जाना चाहिए, वैराग्य शरीर नही बल्कि मन होता है जो चाहे संसारिक जीवन में रहे या साधु संत जीवन में उसका मन वहा होते हुवे भी वहा न हो के माधव के नगर वृंदावन में लगा रहता हैं।

हर पल उसे एक तलब लगी रहती है,
इस संसारिक जीवन और शरीर को सारे क्रम और कर्म पूरे कर के त्याग के प्रभु के श्री चरण में स्थान पाने को शायद इसे ही वैराग्य कहते है।

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