शक्ति कि उपासना

आज से शारदीय नवरात्रि पर्व शुरू हो गया है लेकिन क्या इसका महत्व, उद्देश्य और संदेश हम समझ चुके है या केवल फूल,धूप, प्रसाद,जप और हवन तक ही सीमित रह गए है।

अगर हम उस पर्व के महत्व को नही समझ पाए है तो ये अब मूर्ति पूजा, पंडाल और अन्य पूजन क्रिया सब निष्फल और अर्थहीन हो जायेगी।
ये नवरात्रि में विशेष रूप से शक्ति की उपासना किया जाता है।

जो अपने आप में सम्पूर्णता हैं, अगर हम विचार मनन करे तो समझ पाएंगे कि इन पूजा का प्रतिको का असली महत्व ये बताना है कि स्त्री केवल सौम्य ही नहीं बल्कि रौद्र और सुरक्षात्मक भी हो सकती है जब वैसी जरूरत आ जाए तो नारी केवल मां के रूप में नही बल्कि हर रूप में उसका सम्मान करना चाहिए उन्हें किसी भी पक्ष में कमजोर या पीछे समझना सरासर गलत और दकियानूसी होगी।

जब भैसासुर ने देव ऋषि मुनि तपस्वी सभी को युद्ध के लिए ललकारा और परास्त भी किया
तब सभी देवगण मां शक्ति स्वरूपा भगवती दुर्गा के शरण में गए और अपने रक्षा करने की गुहार लगाई।

तब नौ दिन तक मां और असुर के बीच घमासान युद्ध चला और अंत में मां ने असुर को युद्ध में हराया और देवो कि रक्षा करी।

तब से बुराई पर अच्छाई के जीत के उपलक्ष्य में ये नवरात्रि पर्व मनाया जाता है।बंगाल में खास तौर पर इस पूजा पर्व का महत्व होता है और यूनेस्को ने कोलकाता की दुर्गा पूजा को अपनी धरोहर लिस्ट में शामिल कर लिया है। अब महाराष्ट्र का गणेश उत्सव और गुजरात का गरबा नृत्य भी इस सूची में शामिल हो सकते हैं।

इस पर्व में परिवार संग पूजन व्यंजन और मेले का भरपूर आनंद लेना चाहिए क्योंकि पर्व कि खासियत यही है कि ये हर रूप में आनंद और दर्शन मानव जीवन और समाज को देकर जाता है।

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