अक्षय नवमी का प्रसाद

हमारे देश में त्यौहार पर्व पूजन से परिपूर्ण हैं, ख़ुश होने का रास्ता भोजन से हो कर ही हमारे समाज में और शास्त्रों में लिखित है ।
ऐसे भी जो देश प्रेम के एक से बढ़ के एक उदाहरण पेश किए हो। वहाँ प्रेम में भोजन का तड़का तो एकदम सटीक बैठता है ।
ऐसे ही एक पर्व है अक्षयनवमी इस दिन भारत में सोना और आंवले के वृक्ष के नीचे पूजन और पूरी पकवान का भोजन ब्राह्मणों और अपने परिवारजन के संग किए जाने का विधान है ।

जब आप प्रेम में होते हैं तब आपको अपने प्रेमी या प्रेमिका के घर में हर पूजन कार्यक्रम में गैरहाज़िर होते हुए भी हाज़िर रहना होता है क्योंकि नज़दीकी बढ़ाने का मौका शायद ही कोई प्रेमी युगल छोड़ना चाहता होगा ।

अर्जुन प्रिया की गली के सामने वाले रोड पर शायद 10 चक्कर लगा के थक गया था ।
बार -बार प्रिया कभी कुछ मंगवाती कभी कुछ बार- बार बोलती कि तुम यार बहुत लापरवाह हो हमेशा लेट करते हो और भूल भी जाते हो ।

अपने हँसी को रोकते हुए अर्जुन बोला कि यार पूजन और भोजन की व्यवस्था तुम्हारे यहाँ है, और चाप तुम मुझे रही हो कि भूल गया साले से क्यों न बोलती कुछ कर भी लिया करे।

प्रिया ने आँख प्रेम वाले गुस्से से तरेर कर उसे देखा बोली तुम्हारे सँग कैसे जीवन कटेगा हे भगवान यही था मेरे किस्मत में क्या ?
और राहुल हमेशा छोटा रहेगा तुमको ही करना पड़ेगा अब जाओ न तो कोई देख लेगा तो बवाल खड़ा हो जाएगा ।

अर्जुन ने जाते वक्त उसका दुप्पट्टा पकड़ लिया तो उछलते हुए बोली प्रिया, हुऊह कोई शरारत नहीं आज पूजा है । और आगे निकल गई।

अर्जुन अपनी मोटरसाइकिल घूमा के दोस्तों सँग चाय पीने चल जाता है ।
पूजा प्रिया के यहाँ थी टेंशन अर्जुन को थी ।
बताया तो  न था उसने पर व्रत तो अर्जुन ने भी रख रखा था शायद उसे पाने के लिए एक मौन प्रार्थना कर रहा था भीतर ही भीतर 
शाम 6 बज गए पूजन भोजन के कार्यक्रम में प्रिया जल्दी से अपना मोबाइल निकाल किनारे छत पर जाकर अर्जुन को फोन कर के धमकाने लगी, खूब सिगरेट पी लिया न मिल गई होगी तसल्ली मैं तो बिजी थी, तो मौका लग गया होगा ।

अर्जुन हँसते हुए बोला न बाबा बस चाय पिया हूँ सुबह से। घर भी जाना है माँ इंतज़ार कर रही होगी सुबह से निकला हूँ।
प्रिया ने कहा आओ प्रसाद लेकर माँ के लिए जाना ऐसे मत जाना
ये बोल कर दोनों ने फोन काट दिया।

कुछ देर में प्रिया प्लास्टिक में अपनी बहन की मदद से भोजन पकवान अर्जुन और उसकी माँ के लिए देने लगी, क्योंकि उसकी बहन को सब पता था वैसे पता तो लगभग सबको ही था पर सब जानबूझकर कर अनदेखा करते थे ।
जब खीर देने की बारी आई तो कुछ सामान न मिल रहा था जिसमें वो खीर जा सके ।
तभी उसकी माँ ने बड़े से गिलास में खीर भर के सिल्वर पेपर से पैक कर प्लास्टिक में बाँध कर  देते हुई बोली जाओ दे दो और वो भी पूरे दिन कुछ न खाया होगा तेरे पीछे ।
प्रिया ने कुछ न कहा, बस हल्के- हल्के मुस्कुरा रही थी ।अर्जुन  सारी चीजें लेकर झोले में रख  चल दिया।

शाम अब रात बन चुकी थी और कस्बे में बिजली कटी थी । इस बात का सबसे ज्यादा लाभ या तो बच्चे या तो प्रेमी उठाते हैं ।

जैसे ही पास आकर बाइक के हैंडिल में झोला टांग दिया तो बोली कितने चले हैं आज
अर्जुन मुस्कुरा कर बोला व्रत में था बस एक बार चाय पिया और उसके गाल को चूम के बाइक लेकर निकल गया।

प्रिया आवक रह गई क्योंकि ऐसा कभी न हुआ जब अर्जुन ने व्रत रखा हो या बिन सिगरेट रह पाया हो और चूमने की तो उम्मीद थी क्योंकि अक्सर ऐसे अल्हड़ हरकतें उसे और से अलग बनाती थी ।

टिप्पणियाँ