लाचार पुरुष

दुनिया भर में जितनी भी साहित्यिक रचना हुई है उसमें लगभग अधिकांशतः महिलाओ के इर्द गिर्द लिखी गई है लेकिन ये एक तरह से साहित्यिक भेदभाव है क्योंकि ऐसा नही है कि पुरुष पक्ष में समस्या नही है या वो संघर्ष नही करते है ।
लेकिन पुरषों को कई आयामों में जीवन जीना पड़ता है शायद किसी मशहूर शायर ने खूब कहा है कि "किसी चेहरे को देखने से पहले हजार बार देखना" और ये लाइन पुरुषों के संदर्भ में बहुत ही सार्थक है ।
क्योंकि एक पुरुष अपने मां के लिए अलग, बहन के लिए अलग, बेटी के लिए अलग और पत्नी के लिए अलग भाव और प्रेम समर्पित करता हैं या रखता है ।
लेकिन इस सदी कि सबसे दुःखद बात है कि किसी ने पुरुषो के प्रेम और करुणा से नही पूछा कि क्या आप भी दुखी है ?
क्योंकि कई तरह के पूर्वाग्रह से ये समाज और नकली महिला सहयोगी दल इतने भांति के बात गढ़ के पुरूषों को पूर्ण रूप से गलत साबित किया है क्योंकि उनके अंदाज से जो महिला चाहे आप वो करिए अन्यथा आप गलत, महिला विरोधी और पितृ सत्तात्मक सोच के वाहक है।
जिसका असर आज कल के परिवारों पर बहुत पड़ रहा है। जिससे समाज धीरे धीरे मानसिक रूप से दूषित और तनाव ग्रस्त स्थिति में जा रहा है ।
इसलिए हम सभी को मिलकर ये समझना और तय करना होगा कि अगर महिला काम करने की और परिवार पालन की मशीन नही है तो पुरुष भी पैसा कमाने, सुंदर लगने और सबको खुश रखने के लिए नही बना है। उसका निजी विचार, निजी नज़रिया और उसे भी कभी पुरुष होने के कालिख से मुक्त करना होगा ।
मेरा आशय ये नही है कि महिला का विरोध हो या उनके आगे बढ़ने में बाधा आए लेकिन ये भी नही चाहता कि पुरुषो के संग अन्याय हो 
क्योंकि पुरुष अगर हिंसक है तो उसमे परिवार, समाज और व्यवस्था के साथ कुविचार का बहुत बड़ा हाथ है ।
इसके लिए हम सभी को आगे आकर दोनो पक्ष को समझाना होगा ।सामंजस्य स्थापित करने की पहल करनी होगी अन्यथा सुधार और आधुनिकता से ज्यादा विनाश के ओर हम धीमी गति से बढ़ रहे है। जो आए दिन अखबारों ,सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आ रहा है 
इसलिए दोनो पक्षों का सम्मान रहे कोई किसी का बाधक न हो और समझ और सामंजस्य स्थापित करना होगा ।
अन्यथा जिस तरह से पुरषों के प्रति नफ़रत बढ़ रही है वह समाज को तबाह और बर्बाद कर देगी ।

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