पाप बोध

भारत देश पूरे विश्व का हृदय हैं, भारत के धरा पे भिन्न - भिन्न मत मतांतर पंथों का उदय और अस्त होते ही रहा है, लेकिन सभी मानव निर्मित धर्म और मत में जो सबसे महत्वपूर्ण विचार है, वो पुण्य और पाप, इस विषय में सही और गलत के अलग अलग प्रकार से व्याख्या और उससे बचने के विविध प्रकार के उपाय के मार्गदर्शन करते है। 
 
अगर गूढ़ में जा कर के देखे तो हम समझ पाएंगे कि पंथों कि धुरी ही पुण्य और पाप पर आधारित हैं, क्योंकि अगर पुण्य नही होगा तो स्वयं को पापी कौन ? समझेगा क्योंकि जो लोग पुण्य कर रहे होगे वे अन्य को पापी समझेंगे, क्योंकि वो व्यक्ति वैसा जीवन व्यवहार नही करेगा, जैसा कि वे चाहते हैं। 
तब वो खुद को पापी समझेगा तो स्वयं को पुण्यात्मा बनाने के लिए वो आज के समय के आध्यात्मिक बाज़ार में दिखावा कि शांति ढूढने निकल जाते है, जिससे वे खुद को पापी बोध के अपराध से मुक्त होने का अनुभव करते है ।

इसके अनुभव के आधार पर पंथों के व्यापार कि नींव शुरू होती है, और जो लोग भी पुण्यात्मा बनने कि इच्छा होगी वो पंथों के मार्गदर्शक द्वारा बताए विशेष जीवन शैली का जीवन यापन करते है, तथा वे स्वयं को इस मानसिक अपराध से मुक्त करने में लग जाते हैं कि वे पापी है।

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