साधु समाज और संस्कृति

भारतीय समाज के जीवन शैली में धर्म का स्थान अद्वितीय है, क्योंकि भारतीय समाज के महत्वपूर्ण तानाबाना धर्म को केंद्र में रखकर ही ऐसा तैयार किया गया है कि इसके बिना आप आस्तित्वविहीन जैसा महसूस करने लग जायेंगे 
लेकिन आज धर्म के अनुसार आचरण करने वाले लोगों प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं इसका मुख्य कारण पश्चिमी सभ्यता और सोशल मीडिया के तहत फैलाए जाने वाले झूठे आधार विहीन प्रोपेगेंडा है।

जो भी लोग धर्म का प्रचार प्रसार कर रहे हैं वह सभी लोग झूठे या गलत नहीं है, क्योंकि वह अपने संस्कृति सभ्यता और अपने धार्मिक शैली को बढ़ावा दे रहे हैं जिससे कि आने वाली पीढ़ियां अपने मूल अस्तित्व संस्कृति और सभ्यता से अलग-थलग ना हो लेकिन आज कलयुग में यह काम दिन प्रतिदिन कठिन कम होते जा रहा है।

 इसका मुख्य कारण कुछ ढोंगी पूंजीवादी और राजनीतिक चापलूस बाबाओं के कारण ऐसा हो रहा है जिसके वजह से वास्तविक साधु समाज धूमिल हो रहा है क्योंकि हर लोग लगभग साधु समाज को शक के नजरिए से देखता है जिसके वजह से कोई भी जल्दी इस मार्ग पर चलना नहीं चाहता इसके अगर हम मूल में जाएं तो हम यह समझ पाएंगे ऐसा करने के पीछे मुख्य कारण पूंजीवाद और बाजारवाद एवं पश्चिम सभ्यता का प्रचार प्रसार भारतीय जनमानस पर हावी हो रहा है।

भारतीय समाज में जो लोग भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुसार रह रहे हैं उन लोगों का उन्हीं के समाज में तथाकथित शिक्षित और संपन्न लोगों के द्वारा मजाक उड़ाया जाता है जिस वजह से इस तरह के विचार रखने वाले लोग समाज में कम होते जा रहे हैं जिसके कारण जो बाजार है वह परिवार के प्रति व्यक्ति में विभाजन करने में सफल हो रहा है।

 जिसके कारण भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जो परिवार नाम की संस्था है वह बिखराव की स्थिति पर खड़ी है, जबकि महज कुछ दशक पहले का अवलोकन करें हम तो हम समझ पाएंगे कि पहले जीवन की गुणवत्ता का महत्व था लेकिन अब धन का महत्व है,इसलिए हर कोई धन के लिए हर तरह के कर्मों को अपना रहे हैं,और इसे अपनाने में वह नैतिकता का कोई भी विचार करने के पक्ष में नहीं होते हैं और हमारे सामाजिक साहित्य में भी इसी तरह का आचरण और इसी को संपन्नता का सूचक दिखाया एवं बताया जा रहा है जो धीरे-धीरे भारतीय जनमानस के मानसिक पटल पर अब अपना गहरा प्रभाव दिखा रहा है।

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