गणेश चतुर्थी और अर्धनारीश्वर समाज

आज  के दौर में हर जगह कि सभ्यता और शैली इंटरनेट के माध्यम से दुनिया में हर जगह फैलती जा रही है जिसका सकारात्मक पक्ष ये है कि हमारी धार्मिक भावनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है और ये भावनाएं संगठित रूप लेती जा रही है।
और अनेकता में एकता कि भावना को पुष्टि मिलने लगी है।
जिसका कि जीवंत उदाहरण है गणेश चतुर्थी जो कि मुख्य रूप से महाराष्ट्र में अति उत्साह और आनंद विभोर हो के वहा के समाज में मनाया जाता हैं, लेकिन अब वही गणेश चतुर्थी का पूजन उत्सव महाराष्ट्र से निकल के अब भारत के लगभग हर राज्य में मनाया जाने लगा हैं, गुडगांव के सूरत नगर कालोनी में एक अद्भुत नज़ारा देखने को मिला,
जहां नर या नारी नही बल्कि अर्धनारीश्वरओ ने गणेश जी कि प्रतिमा स्थापित करके सामाजिक सौहार्द और अनेकता में एकता का अनूठा और उत्तम परिचय दिया हैं, तथा सूरत नगर के वासियों ने भी इस धार्मिक आनंद के भावना में कंधे से कंधा मिला कर के साथ दिया जहां किसी से किसी को किसी तरह का न भय था न भेद था।

हमारे समाज के भगवान के वास्तविक और निजी प्रतिनिधि अगर कोई है तो वो अर्धनारीश्वर ही हैं जो सामाजिक ज्ञान के अभाव के कारण अपमान और अलगाव को सहन करते हुवे भी दूसरो के भलाई और फलने फूलने का ही आशीर्वाद देते है, ये शिवत्व का प्रतीक है स्वयं विष पी कर आशीष देने का शक्ति का प्रतिक ये है कि उनके भीतर भी और ममत्व और वास्त्सल्य के पूर्ण भाव निहित होते है।

जो कि अर्धनारीश्वर का अद्भुत संगम है, लेकिन धन्यवाद है ऐसे अर्धनारीश्वरओ और गुडगांव सूरत नगर वासियों का जो आपसी सहयोग सामजस्य का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया हैं। 

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