मनुष्य भावों से निर्मित जीव हैं जो भावों के इर्द गिर्द जीवन को जीता हैं और उस भावों के आदर्श में विश्वास रखता है और उसे अगले पीढ़ी तक पहुंचता है।
लेकिन कुछ मनुष्यों को अपने भावों को लेकर बहुत असमंजस कि स्थिति रहती हैं क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि किस स्तर पर भावों को रोक देना चाहिए
क्योंकि अक्सर सही शब्द नहीं होने पर भावों का आकार और अर्थ बदल कर रख देता हैं।
मनुष्य भावों के नियंत्रण से बाहर निकल जाता है तो वो अपने आस पास के लोगों के भाव को कष्ट देता है,जब उसे अपने भावों के नियंत्रण स्तर पर कमी आती है तो चिड़चिड़ापन होना लाज़मी है लेकिन क्षणिक रूप में हो तो बहुत अच्छा है वरना ये अलगाव के कारक बन जाते हैं जो भावी जीवन को गुमराह और विनाश के ओर लेकर जाती हैं।
इसलिए अपने भावों के लिए एक दायरा बनाने कि आवश्यकता है अन्यथा बिना आप के पता चले ही आप सबसे दूर और अकेलेपन के शिकार हो जायेगे और इसमें आप स्वयं के गलती के जिम्मेदारी भी नहीं लेगे पर सबसे जिम्मेदारी कि गहरी उम्मीद रखेंगे।
शुभ अस्तु 🌸
14 दिसंबर 2024
अशोक द्विवेदी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें