सोशल मीडिया का प्रभाव जनमानस पर

सोशल मीडिया पर दो पक्ष बिल्कुल आमने-सामने खड़े हो गए हैं - एक काला और एक सफेद। यह दो पक्ष सोशल मीडिया पर नग्नता और अश्लीलता के प्रदर्शन को लेकर हैं।

विगत कुछ समय से सोशल मीडिया पर रील देखने पर यह अनुभव हुआ है कि आज समाज अब उदारवादी तौर पर और स्टेट्स सिंबल के तौर पर नग्नता को स्वीकार कर रहा है। यह भावी युवा और किशोरावस्था के लिए उचित नहीं है, क्योंकि वे जैसा देखेंगे, वैसा होने की इच्छा होगी और नग्नता को सामाजिक, पारिवारिक, और हर पहलू में स्वीकृति मिल जाएगी।

एक पुरानी कहावत है - "जैसा होगा अन्न, वैसा बनेगा मन।" उसी तरह, जैसा हम देखेंगे, वैसी दुनिया हमें दिखेगी और वैसा ही हम बनना चाहेंगे। सोशल मीडिया के जरिए यह दुनिया की परिकल्पना हमारे दिमाग में बहुत गहरे और बारीकी से तैयार की जाती है।

आज हर दूसरे रील पर कोई नाच रहा है बेढ़ंगे तरीके से, तो कोई अंतर्वस्त्र दिखा कर भीड़ इकट्ठा कर रहा है, तो कोई निजी पलों का वीडियो वायरल के नाम पर पोस्ट कर रहा है, तो कोई अपना बड़ा घर, तो कोई गाड़ी, तो कोई कपड़े दिखा रहा है। यह सब सोशल मीडिया पर देखने को मिल जाएगा।

लेकिन यह पूंजीवाद और बाजारवाद का बड़ा जमीन तैयार हो रहा है, जो आप अपने आसपास देख सकते हैं। शुरुआत होती है कपड़ों से, जूतों से, फिर दिखावे की गाड़ी से, फिर शादी समारोह में दिखावट का स्तर आसमान छू रहा है और उतने ही रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं।

यह सब की शुरुआत बहुत पहले टीवी सीरियल के माध्यम से हुई और यह धीरे-धीरे इंटरनेट के दौर में गांव, शहर, कस्बा हर जगह पहुंच गया और लोगों के सोच में अपनी जगह बना ली।

खैर, इसका यह मतलब नहीं है कि सोशल मीडिया में केवल नकारात्मक प्रभाव है। अगर सही प्रयोग किया जाए, तो यह बहुत अच्छा हथियार है अपने बात और विचार को एक क्लिक में हजारों लोगों तक पहुंचने के लिए और किसी अच्छे बात को प्रेरित करने के लिए। लेकिन अच्छे से ज्यादा बुरा का प्रभाव समाज में आता है, यहां सोशल मीडिया में भी वही बात आ जाती है।

शुभ अस्तु 🌸
15 दिसंबर 2024
अशोक कुमार 

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